माँ
माँ ही जग में गुरु प्रथम, देती पहला ज्ञान।
शीश झुकायें नित चरण, करें सदा सम्मान।।
महिमा माँ की जानिए, माँ है देवी रूप।
कौन चुका सकता कभी, ममता बड़ी अनूप।।
गुणसागर ममतामयी, रखती हृदय विशाल।
नेह सुधा का पान कर, छूती शिशु के गाल।।
माँ है मूरत त्याग की, वत्सलता की खान।
माँ की सेवा से मिले, जीवन में सम्मान।।
दुख को आँचल में छुपा, रखती मन विश्वास। तपना सीखो कष्ट में, करे यही अरदास।।
सागर सा गहरा हृदय, माँ को लो पहचान।
जैसा ऊँचा है गगन, वैसा दें सम्मान।।
शिशु को अपने अंक में, रख कर करे दुलार।
प्यारी थपकी से सुला, लाती खुशी अपार।।
जननी देवी रूप है, सदा कीजिए मान।
जननी से बनती सदा, बालक की पहचान।।
बालक के हित ज़िन्दगी, करती है बलिहार।
सब प्यारों में श्रेष्ठ है, माँ का सच्चा प्यार।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
भागलपुर, बिहार