मां की ममता
मां की ममता सबसे न्यारी,
अपनी संतान पर दुनिया वारी।
भूख नहीं पर हमें खिलाती,
खिलौने देकर हमें मनाती।
पीछे-पीछे दौड़ी चली आती,
हाथ में लेकर दूध कटोरी।
कभी खिलौनों के लिए मचलता,
कभी रूठता, कभी बहलता।
रोज हमारी खुशी की खातिर,
हमारी जिद पर हरदम हारी।
भूखी रहकर हमें खिलाती,
जाग-जाग कर रात बिताती।
रातों को जब नींद न आती,
नींद बुलाती गा कर लोरी।
जब भी घर से बाहर जाता,
लौट न जब तक वापस आता।
बैठ दरवाजा वाट जोहती,
थामे अपनी सांसों की डोरी।
नित दिन घर का बोझ उठाती,
अपने बच्चों पर प्यार लुटाती।
लाख मुसीबत सिर पर आये,
भरी रहती ममता की तिजोरी।
ममतामई होती है माता,
ममता होती मां की कमजोरी।
प्रकृति में है दो हीं जाति,
पुरुष-नारी की सब संतति।
जड़-चेतन सब की यह जननी,
मां के बिना है कल्पना कोरी।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
बाढ़ (पटना)