महारथी कर्ण का वध
कहते थे लोग जिसे सूत-पुत्र
था वह कुन्ती का प्रथम सुपुत्र।
पाण्डवों का था भ्राता ज्येष्ठ
दानवीर और धनुर्धर श्रेष्ठ।
अपने होठों में दबाकर यह राज़
बचाती रही कुन्ती अपनी लाज।
देखती रही वह उसका अपमान
पर दे न सकी अपनी पहचान।
उस परमवीर का हुआ यह हश्र
मारा गया जब वह था निरस्त्र।
खेत आया जब रश्मि-रथी
भू पर पड़ी थी उसकी अर्थी।
शोक मनाने पहुँची जब कुन्ती
कर्ण के शव पर सिर को धुनती।
यह देख पाण्डव हुए अचंभित
बिल्कुल अवाक और स्तंभित।
जब कुन्ती ने उगला राज़
क्रोधातुर हो गए धर्मराज।
देख सिरकटा कर्ण का शव
स्वयं मर्माहत हो गए केशव।
कर्ण की मौत का उत्तरदायी कौन?
माता कुन्ती या श्रीकृष्ण का मौन?
या फिर कर्ण था स्वयं जिम्मेवार
निरस्त्र अभिमन्यु पर करके वार।
मित्रता का वह बढ़ाकर हाथ
स्वयं हो गया अधर्मी के साथ।
धर्म-अधर्म में जब होता युद्ध
परिणाम जानते सभी प्रबद्ध।
दिलीप कुमार चौधरी
अररिया