मैं ईर्ष्या हूँ  –  मोहम्मद आसिफ इकबाल

मैं ईर्ष्या हूँ, मैं ऐसा ही हूँ।

मनुष्य के मन में वास करता हूँ,
संबंधों का सत्यानाश करता हूँ।

हाँ मैं दोस्तों को भी नहीं छोड़ता, छोड़ता नहीं मैं दुश्मनों को,
मनुष्य से मनुष्य का विनाश करता हूँ।

मैं ईष्या हूँ, मैं ऐसा ही हूँ।

भाई को भाई से लड़ाया,
हंसते परिवार में कलह कराया।

यहां भी मैं रुका नहीं, अभी भी मैं थका नहीं।

फैलाई कुरीतियाँ समाज में शैतान की तरह,
फिर भी लोग मुझे पालते है संतान की तरह।

लोगों का विनाश ही मेरा विकास है,
रखा है इंसानों ने मुझे तावीज की भांति मोड़कर,
कभी न जाऊँगा मैं इन्हें छोड़कर।

मैं अडिग हूँ, अटल हूँ, अमर हूँ,
मैं ईष्या हूँ मै ऐसा ही हूँ।

रचयिता :- मोहम्मद आसिफ इकबाल
विशिष्ट शिक्षक (उर्दू)
राजकीय बुनियादी विद्यालय उलाव, बेगूसराय बिहार।

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