मनहरण घनाक्षरी -जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

प्राण संग दुनिया से कर्म धर्म साथ जाते, केवल मानव तन जलता है आग़ में। दीप संग तेल जले परवाना गले मिले, वर्तिका में छिपी होती रोशनी चिराग में। अज्ञानी…

मां – नवाब मंजूर

जिसके साए तले बढ़ते हैं राजा और रंक या फिर हो कोई मलंग जन्म से लेकर जवानी तक उसी के इर्द-गिर्द घूमते हैं? एक शागिर्द की तरह। हर खुशी हर…

ऐ इंसान तुम इंसानियत क्यों भूलते हो -नीतू रानी

ऐ इंसान तुम इंसानियत क्यों भूलते हो कभी भी मेरी खोज नही करते तुम न हीं कभी कोई खैरियत पूछते हो। जब टूटा था दुःख का पहाड़ तुम पर तब…

मैं भारत ज्ञान प्रदाता हूँ- देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

मैं भारत, ज्ञान प्रदाता हूँ। प्रज्ञा की ज्योति जलाता हूँ।। अपनी संस्कृति, सबसे सुंदर, यह जन-जन को बतलाता हूँ। मैं भारत ———————। माटी का कण-कण है प्यारा। इसका वैभव अद्भुत…