दहेज-निधि चौधरी

दहेज दहेज की अग्नि में जलते पिता की, सुनाने हूँ आई कहानी सिसकती। पिता बिटिया की हो गई है पक्की सगाई, कि लाखों में’ हमने खरीदी जमाई। थी खेती पुरानी…

मुनिया-निधि चौधरी

मुनिया पढ़ेगी मुनिया बढ़ेगी मुनिया, जग को रौशन करेगी मुनिया। घरों की है लक्ष्मी, सहेजो सँवारो, सफलता की सीढ़ी चढ़ेगी मुनिया। ज़रा-सी उड़ानें भरे जो ज़माना, परिंदों-सी फिर तो उड़ेगी…

बालक मन-एकलव्य

बालक मन गिरता है गिरने भी दो उतरता है उतरने दो, रोको मत! क्या पता झरना बनकर नदियों का उद्गम कहलाए। बहता है बहनें भी दो नदियां बन जीने भी…

राष्ट्रप्रेम की भावना-प्रियंका कुमारी

राष्ट्रप्रेम की भावना राष्ट्रप्रेम की भावना केवल युद्ध भूमि में ही नहीं होनी चाहिए, इसकी शुरुआत हमें अपने नेक इरादों से करनी चाहिए, ना भेदभाव हो, ना कोई जाति-धर्म का…

ये मेरा घर-मनु कुमारी

ये मेरा घर कितना प्यारा, ये मेरा घर, रहते यहाँ हम, हिलमिल कर। कितना सुन्दर, कितना मनहर, है अपना, ये मेरा घर। मम्मी-पापा, दादा-दादी, भाई-बहन, और चाचा-चाची। सब मिल रहते…

प्रकृति-अर्चना गुप्ता

प्रकृति प्रकृति की प्रवृत्ति आदिकाल से ही निश्छल सहज और सौम्य रही है करती रही है चिरकाल से सबकी तृष्णाओं को तृप्त प्रवाहित होती रही है सदा स्थूल जगत में…

बेटी-प्रभात रमण

बेटी बीजों को कोंपल बनने दो कलियों को तोड़ो मत तुम बेटी तो घर की लक्ष्मी है उससे मुँह मोड़ो मत तुम घर में चहकती रहती है कटुता भी हँस…