पानी पानी की है बात निराली, इससे दुनियाँ में हरियाली। इसके बल पर दुनियाँ में, सजती है लोगों की थाली। पानी से ही आग बुझाते, खेतों में हम फ़सल…
धरती माँ-सूर्य प्रकाश
धरती माँ धरती माँ है बड़ी महान, सबको मानती अपनी संतान I कष्ट हजारों सहती है, हमसे कुछ ना कहती हैं। लालन पालन करती है माँ, पेट हमारा भरती है…
संयुक्त परिवार-मनोज कुमार दुबे
संयुक्त परिवार घर के आंगन में जो खुशियाँ हमने पायी है। वक्त वो शायद बीत गया जो हमने बिताई है।। दादा जी के कंधे पर अपनी थी सवारी। मेरी दादी…
रामचरित-राजेश कुमार सिंह
चौदह कलाओं वाले सीतापति का रामचरित मेरे आराध्य देव मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम हैं। रघुकुल शिरोमणि निश्छल और निष्काम हैं।। पिता दशरथ और माता कौशल्या के दुलारे हैं। लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न…
स्वयं की पहचान-मधुमिता
स्वयं की पहचान क्या कभी पहचाना स्वयं को? कौन हैं हम? भूलकर स्वयं को आत्मा देहाभिमान में ढूंढे, कौन है परमात्मा? देह नही तू देही है, मिलेंगे कैसे वो? परमात्मा…
क्यों भूल गया-कुमकुम कुमारी
क्यों भूल गया क्यों भूल गया ऐ इंसान ये किराए का है मकान साँसे बेच-बेच कर किराया चुकाना है फिर वापस घर चले जाना है तो क्यों इस नश्वर जगत…
बची रहे मानवता-रानी कुमारी
बची रहे मानवता कोरोना के कहर से हमने अनुभव यह पाया है धन-दौलत, पद, सत्ता का मोह बस भूल-भूलैया है। हो सत्ता के सिरमौर या सुंदर स्वस्थ बदन गठीला उसके…
मोक्ष की प्रतिक्षा-अवनीश कुमार
मोक्ष की प्रतीक्षा थक जाता जब मानव का तन मन ईश्वर से मोक्ष दिलाने को करता नमन लेकिन आत्मा है उसे पुकारती, उसे धिक्कारती क्या चलने के पहले कुछ…
प्रकृति-प्रियंका प्रिया
प्रकृति हो व्याकुल मन की; व्यथित क्षुधा तुम, अमृत तुल्य; नीर सुधा तुम।। हे प्रकृति रुपी; ममता मयी, तू सदा रहे कालजयी, तू गोद में लिए अपने खड़ी, हे प्रकृति…
जल की बूंदें-स्वाति सौरभ
जल की बूंदे मचल रही थी जमीं से ही, उठने को ऊपर की ओर राह देख रही थी सूरज का, संग ले जाएगा आसमां की ओर सैर करूँगी आसमान में,…