मत बाँधों मेरे पँखों को,
मुझे उन्मुक्त गगन में उड़ने दो।
अभी जरा बचपन है बाकी,
मदमस्त पवन सी बहने दो।
अभी उमर चौदह की केवल,
अभी मुझे पढ़ना है।
अभी तो चलना सीखा मैंने,
अभी हिमालय चढ़ना है।
मत बाँधो रिश्तों के बंधन में,
मैं तो नाजुक डोर हूँ।
जो काट सकूँ अन्याय की जड़ को,
वो धार मुझे बनना है।
नमक-तेल को मैं क्या जानूँ,
अभी गुड़ियों के दिन है।
नाज़ुक कली हूँ मैं उपवन की,
अभी मुझे खिलना है।
मुझे है हक जीवन जीने का,
मुझे जहर नही पीना है।
औरों को जीवन दान दे सकूँ,
वह अमृत मुझे बनना है।
अपने मार्ग की बाधाओं से लड़,
निर्झर सरिता सी बहना है।
बढ़ना है जीवन के पथ पर,
कुंदन सा दमकना है।
बिंदु अग्रवाल शिक्षिका
मध्य विद्यालय गलगलिया
किशनगंज बिहार
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