दोहा
जैसे ही रचना हुई, दोहा-छंद प्रधान।
वैसे ही मिलने लगा, लोगों से सम्मान।।०१।।
दोहा-मात्रिक छंद है, सुंदर मनहर-गेय।
मैं तो बौद्धिक मंद हूँ, साध रहा यह ध्येय।।०२।।
चार-चरण में रच रहे, दोहा सुंदर साज।
शब्द-चयन में फँस गया, देखो साधक आज।।०३।।
शब्द-चयन से हीन मैं, हुआ आज लाचार।
तथ्य-सत्य यह नित्य है, फिर भी दूँ आकार।।०४।।
भरा मंच विद्वान से, उसमें मैं मति हीन।
सदा भाव अज्ञान का, करता है गमगीन।।०५।।
परिभाषा हैं प्रेम की, निश्छल मन का भाव।
निज कर्मों से हो नहीं, किसी और को घाव।।०६।।
सुंदर सुखदायक जहाँ, हरपल कर्म प्रभाव।
प्रेम सरित बहता वहाँ, भरता हसरत नाव।।०७।।
तैर रहा जो जगत में, लिए प्रेम पतवार।
जीवन नैया पार हो, सुखमय इस संसार।।०८।।
प्रेम नहीं धन मांँगता, कभी न बदले भाव।
जो जैसा जिस हाल में, रहे हृदय में चाव।।०९।।
प्रेम पुष्प खिलता हृदय, मन में भरे मिठास।
“पाठक” को आनंद दे, कर देता है खास।।१०।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
