शीतलता के बीच बहाती,रहती तू रस-धार है!
नीले-नीले नभ-मंदिर से,हे माते!हो जा प्रकट,
उत्कट प्रत्याशा में ॲंखियाॅं,राह तकी है एकटक।
देर हुई माॅं ब्रह्मचारिणी!,क्षमा करो नादान को,
जो भी संभव नियत समय में,ले अर्पित सम्मान को।।
धीरे-धीरे घर दरवाजे, सुखद वंदनवार सजे,
थाल लिए मैं खड़ा पंक्ति में,कर्ण प्रिय संगीत बजे।
भक्ति-भाव की धारा बाहित,ब्रह्मचारिणी नाम से,
सदियों से विश्वास जागृत,पावन धरती धाम से।।
आई बाधा दूर करोगी,अटल अमिट विश्वास है,
धर्म-विमुख ही काम करे जो,उसका निश्चित नाश है।
सत्गुण रस का पान कराना, आई तेरे द्वार पर,
कहाॅं-कहाॅं माया भटकाई,आई अब तो हार कर।।
सुभगचरणरजकण दे देना,परम भाग्य स्वीकार है,
शीतलता के बीच बहाती,रहती तू रस-धार है!
पार कराकर भवसागर से,रक्षित कर नादान को,
भौतिक सुख तो क्षणभंगुर है,अमर बना “अनजान”को।
✍️✍️रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
प्रभारी प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दरवेभदौर
