मीठी बोली।
कोयल के लिए स्वर,अनमोल सरोवर,
डूबने को हर लोग,चाहते हैं दिन-रात।
काक काला लिए रंग,कंठस्थ है स्वरभंग,
करते बच्चों को तंग,निर्दयी पक्षी की जात।
आचार-विचार से ही,पहचान मिलती है,
करते हैं मीठी बोली, प्रतिपक्षी को भी मात।
काक और कोयल को,रंग दिया एक पर,
बोली मीठी दोनों बीच,तोल रही है औकात।
रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दरवेभदौर प्रखंड पंडारक पटना बिहार
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