शांति का विकल्प-जैनेन्द्र प्रसाद रवि

मनहरण घनाक्षरी छंद जब कभी युद्ध होता, शांति को मानव खोता, द्वंद में विनाश छिपा, संतों का है कहना। प्रेम भाईचारा जैसा, लड़ाई विकल्प नहीं, शांति प्रिय लोग चाहें, मिलजुल…

सुहाना मौसम- जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

मनहरण घनाक्षरी छंद सरसों के फूलों पर, तितली है मँडराती, बहारों के आने पर, हँसता चमन है। झूमती खुशी में डाली, खेतों बीच हरियाली, कोयल की तान सुन, खिला तन…

मौसम का असर- जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

मनहरण घनाक्षरी छंद दही-चूड़ा,तिल खा के, सूरज है अलशाया, कुहासे में दिखता है, धुंधला गगन है। पेड़ों की डालियों से शबनम टपक रही, बह रही मंद-मंद, शीतल पवन है। झरोखे…

श्रीराम राज्याभिषेक- जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

मनहरण घनाक्षरी छंद सफल हों सारे काज, राम होंगे युवराज, राजदरबार संग, हर्षित समाज है। बड़े-बड़े भूप आए, भेंट उपहार लाए, अयोध्या में अब भाई, होगा रामराज है। पुलकित महतारी,…

हालात से मजबूर- जैनेन्द्र प्रसाद रवि

जीवन के कई रंग, लोग यहां लड़ें जंग, ठंड से ठिठुरे, नहीं चादर है पास में। कोई नहीं देखे अभी, दरवाजे बंद सभी, गली में भिखारी खड़ा- भोजन की आस…

बाल मन- जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

बिस्किट मिठाई केक, नौनिहालों को भाते हैं, जहाँ हों खिलौने-टॉफी, आंखें उसी ओर हैं। कोई भी मौसम रहे, खुशियों की बाँह गहें, गली से चौबारे गूंजे, बच्चों की ही शोर…

हमारी जिम्मेवारी- जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

मनहरण घनाक्षरी छंद कल जिसे विदा किया, वह साल बीत गया, गुजरा जमाना अब- नमन पुराने को। छोड़ के पुरानी बातें, मिलकर काम करें, वक्त फिर आया गिले- शिकवे भुलाने…

नया साल मुबारक हो- जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

आनंद के सागर में, डुबकी लगाते रहें, दुनिया की हर खुशी, मिले नए साल में। नित्य नए पकवान, मिले भोजन मिष्ठान, हो पापड़ तिलौड़ी घी, रोज भात दाल में। अन्न-धन,…

जीवन अनमोल-जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

मनहरण घनाक्षरी छंद माता – पिता, गुरुजन, का जो ना सहारा मिले, उम्र सारी बीत जाए, जिंदगी बनाने में। मानव जीवन भाई, बड़ा अनमोल होता, वक्त न बर्बाद करें, बैठ…