उलझन- गीत
सारी सुविधा भरी पड़ी है, पर मिलता आराम नहीं।
बहुत दिनों से घरवालों का, आया है पैगाम नही।।
रोजी रोटी के चक्कर में, घर जाना जैसे छूट गया।
अपनों की बगिया का लगता, कोई टहनी टूट गया।।
भागा भागी में ही हरपल, लेते कभी विराम नहीं।
बहुत दिनों से घरवालों का, आया है पैगाम नही।।०१।।
लेकर छुट्टी घर जाना है, सोचा हरपल करते हैं।
लगा झमेला रहता ऐसा, उलझे आहें भरते हैं।।
कौड़ी कौड़ी जमा करें पर, बचता कोई दाम नहीं।
बहुत दिनों से घरवालों का, आया है पैगाम नही।।०२।।
छोटी लगती महल अटारी, घर के अपने आँगन से।
नहीं शीतलक शीतल करता, मिलती खुशी न वाहन से।।
अपनों की महफिल को छोड़े, बन पाता मैं श्याम नहीं।
बहुत दिनों से घरवालों का, आया है पैगाम नहीं।।०३।।
गीतकार:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
