घट-घट वासी शिव संन्यासी – सरसी छंद गीत
बैठे हैं भस्म लगा कैलाशी, करते बेड़ा पार।
घट-घट वासी शिव संन्यासी, महिमा अपरम्पार।।
महाकाल शंकर विश्वंभर, हर लेते हैं शोक।
शरणागत जो भी है आता, संवरे उसका लोक।।
भूतल वासी देव यही हैं, सकल सृष्टि आधार।
घट-घट वासी शिव संन्यासी, महिमा अपरम्पार।।०१।।
सदा सुधाकर भाल विराजे, गले मुंड की माल।
अवढरदानी ध्यान लगाए, पहने शार्दुल खाल।।
दृश्य अनोखा लगता सबको, सिर पर गंगा धार।
घट-घट वासी शिव संन्यासी, महिमा अपरम्पार।।०२।।
कंठ हलाहल ग्रहण किए हैं, नीलकंठ है नाम।
बारह ज्योतिर्लिंगों में है, शिव का प्यारा धाम।।
भक्त सभी योनी चौरासी, चाह रहे उद्धार।
घट-घट वासी शिव संन्यासी, महिमा अपरम्पार।।०३।।
कर डमरू त्रिशूल को लेकर, देते हैं परित्राण।
गीत संगीत सुर ताल दिए, करने को कल्याण।।
नेत्र तीसरा जब भी खोलें, मचता हाहाकार।
घट-घट वासी शिव संन्यासी, महिमा अपरम्पार।।०४।।
दुख हारी भोले भण्डारी, देते सबका साथ।
भक्ति भाव से अगर पुकारे, रखते सिर पर हाथ।।
हृदय शिवाला “पाठक” का यह, चिंतन है शिव सार।
घट-घट वासी शिव संन्यासी, महिमा अपरम्पार।।०५।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश, पालीगंज, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
