ताज़- जयकृष्णा पासवान

Jaykrishna

सुगम फरिश्तों के ,
ताज़ है आप ।
ममताऔर करुणा,
की नाज़ है आप ।।
“दिल इसे पाकर भला
क्यों नहीं झूमे ” ।
मेरी धड़कनों की,
आवाज़ है आप।।
लहराती गेसूंओं की,
घटाये बनकर।
महकती फिजाओं की,
” हवाऐं बनकर ”
बरसती भावनाओं के
गुलज़ार है आप।।
रोम-रोम पाकर मेरा मन,
पुलकित हो गया।
ऐसी खज़ानों का ,
अम्बार है आप ।।
सुगम फरिश्तों के ताज़ है आप………………….।।
इस वेदना को जताऊ,
मैं कैसे।
जो दरिया से समंदर हो,
इसकी माप मैं कैसे करूं।
जो चांद और तारों से उपर हो
इस अनंत सीमाओं की,
ललाट है आप ।
सुगम फरिश्तों के ताज़ है आप………………….।।
फूल में कलियों की तरह,
स्नेह है आपका।
बागों में भंवरों की तरह,
विचार है आप का।।
मुस्कान तो जन्नत की,
अलंकार है आपका।
ऐसी वर्षांत की बूंदे,
सिर्फ बरसती रहे।
उमड़ती उमंगों की ,
बहार है आप ।।
सुगम फरिश्तों के ताज़ है
आप…………..।।


जयकृष्णा पासवान
स०शिक्षक उच्च विद्यालय बभनगामा बाराहाट बांका

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