देशी खाना- बाल कविता
छोड़ो बच्चों स्प्राइट माजा,
आम लाओ मीठा व ताजा।
पिज़्ज़ा-बर्गर-नूडल त्यागो,
खाओ खूब रोटी और दाल।।
जो खाते हैं मैगी-तंदूरी,
तली चपाती, पानी-पुरी।
जवानी में ही दादा जैसे,
चिपक जाते हैं उनके गाल।।
कुरकुरे-बिस्किट जो खाते,
पेट पकड़ कर रोज पछताते।
हो जाती है डॉक्टर से यारी,
बुरा हो जाता है उनका हाल।।
बाजरे और मकई का घट्ठा,
खाकर लोग बनते थे पट्ठा।
दोस्तों संग मिट्टी लगाकर,
अखाड़े में ठोकते थे ताल।।
जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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