धरा विचार – मुक्तामणि छंद
धरती कहती प्रेम से, सुनें प्यार से बातें।
भूल अगर करते नहीं, आज नहीं पछताते।।
भीषण गर्मी पड़ रही, काट रहे तरु प्यारे।
पीने के लाले पड़ें, सूखे सरवर सारे।।
धरा कही ऐसे अगर, वृक्ष लगा तुम आते।
उष्ण भरी ऐसी हवा, कभी नहीं बह पाते।।
देर नहीं अब भी हुई, करो कर्म तुम वरना।
मुझे मारकर तुम बचो, भूल न ऐसी करना।।
धरती कहती हैं सुनो, रूप बदल कर मेरी।
सैर अम्बर की करना, स्वप्न रहा जो तेरी।।
हवा पानी खाद्य सभी, कौन तुझे फिर देगा।
प्राणहीन होकर यहॉं, क्या विकास कर लेगा।।
प्यारे, अब भी वक्त है, बात हमारी मानो।
कम करना प्रदूषण है, वृक्ष लगाना ठानो।।
तुम मेरी संतान हो, कष्ट नहीं तुम पाओ।
ममता है तड़पा रही, मुझको नहीं सताओ।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज पटना।
