प्रकृति – रत्ना प्रिया

Ratna Priya

नित्य कर्मरत रहती प्रकृति, तब जग सुंदर हो पाता है।
जग में वही सफल हो पाता जिसे परिश्रम भाता है।।

नभ में सूरज चाँद-सितारे, नित्य समय पर आते हैं,
जिम्मेदारी सदा निभाते, कभी नहीं घबराते हैं,
पृथ्वी निरंतर घूर्णन करती, न थकती न सुस्ताती है,
दिवस-रात्रि ससमय होते हैं, चूक नहीं हो पाती है,
धरती के पालन-पोषण से, प्राणी जीवन पाता है।
नित्य कर्मरत रहती प्रकृति, तब जग सुंदर हो पाता है।।

वृक्ष-वनस्पतियाँ इस धरा पर, प्राणवायु बिखराती है,
पोषित-संचित पुष्पित करके, माँ जैसी दुलराती है,
कालकूट बन विष को पीते तरुवर मित्र कहाते हैं,
जगत कल्याण में रत रहकर, आशुतोष बन जाते हैं,
इन विटपों के प्रति रोम-रोम नतमस्तक हो जाता है।
नित्य कर्मरत रहती प्रकृति, तब जग सुंदर हो पाता है।।

नदियाँ झरने और समुन्दर, जलाधिपति कहलाते हैं,
निमंत्रण पाकर वसुंधरा का मेघ जल बरसाते हैं,
जल चक्र के नियमित रहने से, पृथ्वी पोषण पाती है,
शस्य-श्यामल-सी शोभित धरती नीलग्रह कहलाती है,
प्राकृतिक संसाधन जल यह, जग की प्यास बुझाता है।
नित्य कर्मरत रहती प्रकृति, तब जग सुंदर हो पाता है।।

सत्व, रज, तम के सम्मिश्रण से, मानव आकृति पाता है,
पंचभूतों की इस सृष्टि में, तन धारण कर आता है,
नर से नारायण बनने में, प्रकृति सहायक होती है
पंक में खिला ब्रह्मकमल-सा, और सीप में मोती है
मन की प्रकृति साध मनुज तन महामानव कहलाता है।
नित्य कर्मरत रहती प्रकृति, तब जग सुंदर हो पाता है।।

रत्ना प्रिया ‘शिक्षिका'(11-12)
उच्च माध्यमिक विद्यालय माधोपुर
चंडी, नालंदा

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