मनहरण घनाक्षरी छंद
हर साल नवरात्रि,
माता की चरण आवे,
पूजा बिना सुना लगे
महल अटरिया।
धन पद सुत दारा,
कुछ दिनों का सहारा,
चाहत में यूं ही सारी
बीती रे उमरिया।
छूटे नहीं मोह-माया,
भक्ति नहीं कर पाया,
एक बार मेरी ओर
फेरो माँ नजरिया।
मानव का तन पा के,
भजन न कर पाया,
जाने कैसे मैली हुई
निर्मल चदरिया।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर,पटना
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