भूजल का दोहन करें नहीं- लावणी छंद गीत – राम किशोर पाठक

भूजल का दोहन करें नहीं- लावणी छंद गीत

भूजल का दोहन करें नहीं, संग्रह बहुत जरूरी है।
बसा भूगर्भ में मधुरिम यह, बनी आज मजबूरी है।।

मान लिया सच भूमंडल पर, नीर तीन चौथाई है।
जिसका तीन शतांशी प्यारे, बस मधुरिम कहलाई है।।
सतही जल का सौवां हिस्सा, नदी, झील में पूरी है।
बसा भूगर्भ में मधुरिम यह, बनी आज मजबूरी है।।०१।।

भूजल मीठा-मीठा होता, प्रकृति कृपा इसको मानों।
भाग जलचक्र का कहता यह, मुझसे हीं जीवन जानों।
तेरे दोहन करने से अब, बढ़ती इसकी दूरी है।
बसा भूगर्भ में मधुरिम यह, बनी आज मजबूरी है।।०२।।

वर्षा होती तो यह भरता, पुनर्भरण से क्रम चलते।
कुछ हिस्सा अंदर बर्फ बना, पर्माफास्ट जिसको कहते।
निष्कासन हो चुका बहुत अब, जल स्तर लगे अधूरी है।
बसा भूगर्भ में मधुरिम यह, बनी आज मजबूरी है।।०३।।

रेतों के अंबार जहाँ हैं, भूतल के अंदर बसते।
रंध्राकाश उसे कहते हैं, जिसमें जाकर जल फँसते।।
नौ मीटर गहराई बढ़कर, बढ़ा रही मजदूरी है।
बसा भूगर्भ में मधुरिम यह, बनी आज मजबूरी है।।०४।।

सड़कों का हम जाल बिछाएँ, खड़ा महल ऊँचा-ऊँचा।
फैला कंक्रीट चारों ओर, मृदा का कद किया नीचा।।
तरुवर को भी काटे हमने, कह विकास की धूरी है।
बसा भूगर्भ में मधुरिम यह, बनी आज मजबूरी है।।०५।।

दोहन जल का रोक सके हम, सारे चेतन हो जाएँ।
खूब लगाएँ तरुवर फिर से, हम श्यामल धरा सजाएँ।।
माध्यम बनता पुनर्भरण का, लगे धरा भी नूरी है।
बसा भूगर्भ में मधुरिम यह, बनी आज मजबूरी है।।०६।।

वन, उपवन, तरुवर को सींचें, ताल, तलैया, पोखर में।
वर्षा जल का संचय करना, भूजल के संवर्धन में।।
जीने, पीने के लिए बना, भूजल हीं कस्तूरी है।
बसा भूगर्भ में मधुरिम यह, बनी आज मजबूरी है।।०७।।

रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश, पालीगंज, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

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