मनहरण घनाक्षरी
चले वसंती बयार,
छाया सबपे खुमार,
होकर हंस सवार,
आई चन्द्रकांति माँ।
छेड़ दी वीणा की तार,
झंकृत हुआ संसार,
छाई खुशियाँ अपार,
आई चन्द्रकांति माँ।
छटा घोर अंधकार,
हुआ जग खुशहाल,
देने ज्ञान का भंडार,
आई चन्द्रकांति माँ।
पूजे-पूजे नर-नार,
करे सब जयकार,
देने आशीष अपार,
आई चन्द्रकांति माँ।
कुमकुम कुमारी “काव्याकृति”
मुंगेर, बिहार
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