क्या मर्द को दर्द नहीं होता ? होता जरूर है , पर वह बयां नहीं करता ।
जिम्मेदारियां ! चुप करा देती है उसे, पूर्ण विराम की तरह ।
घर की जरूरतें, बीवी – बच्चों की ख्वाहिशें। गुम हो जाते हैं उसके अपने शौक, उन्हें पूरा करने में।
ऑफिस की थकान, बॉस की झल्लाहट। कभी बयां नहीं करता वह। मालूम है उसे, सहना केवल उसे ही है। और मुस्कुराता हुआ, घर आ जाता है।
कमजोर न समझे घरवाले, छुपा लेते हैं अपने आंसुओं को। पर युद्ध तो, अंतर्मन में जारी रहता है।
असंख्य ज़ख्मों को छुपाना, उसकी फितरत बन जाती है। फिर भी वह जताता है, उसे दर्द नहीं होता।
दीपक कुमार

