बहुत याद आती है माँ तुम्हारी
अब वो आँचल कहाँ से लाऊँ,
जहाँ छुपाकर हर दुख से मुझे
बैठकर आपने थी रात गुजारी।
कहाँ गयी मुझे छोड़कर माँ,
बहुत याद आती है तुम्हारी।
आपके बिन है सूनी दुनिया
और दुर्गम है जीवन की राह,
आपका प्यार निश्वार्थ था माँ
यहाँ सबको है अपनी परवाह।
बहुत थका हूँ इस भागदौड़ से
आ जाओ ममता बरसाने को
लौट आओ माँ फिर एकबार
चैन से मुझे गोद में सुलाने को।
वात्सल्य की मृदु छांव आपकी
जब तक थी हम निश्चिन्त रहे,
अब कोई दर्द भी होता है तो
चुपचाप सह लेते हैं,किससे कहें।
आपने मेरी खुशी की खातिर
लुटा दी अपनी खुशियाँ सारी,
अपने अंक में समेट लो मुझे अब
माँ,बहुत याद आती है तुम्हारी।
स्वरचित मौलिक रचना
संजय कुमार (अध्यापक )
इंटरस्तरीय गणपत सिंह उच्च विद्यालय,कहलगाँव
भागलपुर (बिहार)