मेरा बिहार मेरी पहचान – भोला प्रसाद शर्मा

Bhola

बिहार की माटी का क्या कहना,
हर कण में बसा एक गहना।
ज्ञान की गंगा यहीं से बही,
बुद्ध की धरती यही रही ।

पाटलिपुत्र के गौरव की गाथा ,
चाणक्य नीति के यश की व्यथा।
गौतम बुद्ध ने दी थी शिक्षा,
अहिंसा,करुणा की सत्य परीक्षा।

नालंदा और विक्रमशिला,
ज्ञान का अद्भुत था सिलसिला।
जहाँ विदेशी आकर पढ़ते थे,
ज्ञान की ज्योति गढ़ते थे।

गंगा की लहरें गाती हैं,
मैथिली, मगही लहराती हैं।
भोजपुरी की मीठी बोली,
जैसे आम की डाली झोली।

लिच्छवी का लोकतंत्र यहाँ था,
जिसने दुनिया को राह दिया था।
सम्राट अशोक की भूमि यही,
सत्य अहिंसा का मार्ग सही।

यहाँ का खेत सोना उगाता,
किसानों का श्रम मुस्काता।
गेहूँ, मक्का, धान की खेती,
हरियाली से हँसती धरती।

छठ पूजा का पावन त्यौहार,
सूर्य उपासना का उपहार।
माटी का दीया जब जलता है,
सारा बिहार पुलकित रहता है।

कुशवाहा, यादव, भूमिहार,
सब मिलकर रहते सदा तैयार।
भाईचारे की बस्ती है यह,
प्रेम-संबंध की कश्ती है यह।

भोजपुरी गीतों का होड़,
हर दिल को दे देता जोर।
लोरी में जब माँ गाती है,
माटी भी सोहर सुनाती है।

मधुबनी की खिलती चित्रकारी,
हाथों में लगती जैसे फुलवारी।
कला-संस्कृति की शान है यह,
बिहार मेरा अभिमान है यह।

पटना, गया, मुजफ्फरपुर,
बक्सर, दरभंगा भागलपुर।
हर कोना इसका इतिहास कहे,
हर गली में यहाँ मधुमास बहे।

यहाँ की रोटी में प्यार बसा,
माँ के हाथों का स्वाद बसा।
लिट्टी-चोखा का क्या कहना,
सत्तू का स्वाद भी है गहना।

यहाँ का मौसम सुहाना है,
गंगा का पानी भी प्यारा है।
हर आँगन में तुलसी चौरा,
मन में बसे माँ गंगा डोरा।

कदम-कदम पर वीरों का मान,
बाबू वीर कुँवर सिंह की शान।
गाँधी के सत्याग्रह का मंत्र,
वो चंपारण बना था तंत्र।

यहाँ की मिट्टी में सोना है,
कर्मठ जनों का नाम सलोना है।
मेहनत में जिसका नाम बड़ा,
वो बिहार के राहों में खड़ा।

धरती पर स्वर्ग का एहसास,
मेरा बिहार मेरा विश्वास।
इसके कण-कण में बसी है जान,
मेरा बिहार मेरी पहचान।

भोला प्रसाद शर्मा
डगरूआ, पूर्णिया, बिहार

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