याद बहुत वह आती है

याद बहुत वह आती है- गीत (१६-१४)

मस्ती में जो कुछ पल बीते, अब हमको तड़पाती है।
बचपन बीता जिन गलियों में, याद बहुत वह आती है।।

सुबह-सवेरे बगिया जाकर, गुल्ली-डंडा जो खेला।
दो रुपए में खुश होकर हम, आते थें घुमकर मेला।।
वक्त नहीं अब मिलता है तो, चित चिंतित हो जाती है।
बचपन बीता जिन गलियों में, याद बहुत वह आती है।।०१।।

हर गलती पर कूटे जाते, फिर भी खुशियाँ सारी थी।
रिश्तों का उपवन था प्यारा, जिसकी मुझे खुमारी थी।।
फिर से घर-घर में जाने को, मन अक्सर उकसाती है।
बचपन बीता जिन गलियों में, याद बहुत वह आती है।।०२।।

दादी की आँखों का तारा, घर का राज दुलारा था।
पूरी बस्ती अपनी ही थी, घर-घर का ही प्यारा था।।
आज पड़ोसी नहीं सुहाती, मन ही मन मदमाती है।
बचपन बीता जिन गलियों में, याद बहुत वह आती है।।०३।।

गीतकार:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना।
संपर्क – 9835232978

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