हरि भजे शिव शंभु महेश्वरम् – राम किशोर पाठक

हरि भजे शिव शंभु महेश्वरम्

भजेऽहम् पद पंकज सुंदरम्।
हरि भजे शिव शंभु महेश्वरम्।।

त्रिविध ताप निवारण जायते।
शरण शंभु मनोहर भायते।
आदि अनादि सौम्य सुरेश्वरम्।
हरि भजे शिव शंभु महेश्वरम्।।

दिप्तं सदैव शशि शेखराय ।
शूल हस्ताय जटा धराय।।
भजे शूलपाणी अनीश्वरम्।
हरि भजे शिव शंभु महेश्वरम्।।

भयात् मुक्तिम् सुखं कारकं।
कालकूट हलाहल धारकम्।।
भजे गंगाधर विश्वेश्वरम्।
हरि भजे शिव शंभु महेश्वरम्।।

व्याघ्र छालं व्यालस्य हारम्।
पतित-पावनी सुरसरि धारम्।।
हरे जटाधारी गिरिश्वरम्।
हरि भजे शिव शंभु महेश्वरम्।।

विचित्रं इव त्रैलोक्य नाथम्।
चंद्रमौली हे विश्वनाथम्।।
भजे महादेव परमेश्वरम्।
हरि भजे शिव शंभु महेश्वरम्।।

दक्ष कन्या बामांगे बसति।
मायापति सह मंदं विहसति।।
निराकारम् ओंकारेश्वरम्।
हरि भजे शिव शंभु महेश्वरम्।।

रुद्र रूपाणि लोके रमंतम्।
देहि देवम् भक्तिम् अनंतम्।।
भजेऽहम् हर त्र्यंबकेश्वरम्।
हरि भजे शिव शंभु महेश्वरम्।।

कंठे हलाहल नीलकंठम्।
संजीवनी मृतं उत्कंठम्।।
नागेश्वरम् अघ रामेश्वरम्।
हरि भजे शिव शंभु महेश्वरम्।।

भस्मांग दिव्य भूषावृताम्।
सत्यं शिवम् कालातीताम्।।
कुरु मे कृपा धुश्मेश्वरम्।
हरि भजे शिव शंभु महेश्वरम्।।

शंभु सदा श्मसाने रमंतम्।
भाव रूपम् हृदये बसंतम्।।
इयम् स्तुतिमहो पाठकेश्वरम्।
हरि भजे शिव शंभु महेश्वरम्।।

रचयिता:- राम किशोर पाठक:
सियारामपुर, पालीगंज, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

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