मनहरण घनाक्षरी- रामपाल प्रसाद सिंह

उपदेश देकर जो, जिंदगी सवार लेते,

बेचकर निज कर्म, सहज बनाते हैं।

दुनिया को कहे फिर, ,बेकार हैं मोती हीरे,

खुद छिप-छिपकर, कुबेर सजाते हैं।

उजाला में सत्य जब, नंगा नाच करता है,

ॲंधेरा सहारा देके, उसे ललचाते हैं।

माया फैली दुनिया में, दूजे को बचाने वाले,

उससे लिपट खुद, पापी बन जाते हैं।

रामपाल प्रसाद सिंह “अनजान ”

भदौर पंडारक पटना, बिहार

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