निद्रा
कभी वास्तविक कभी काल्पनिक होती है यह निद्रा।
कभी प्रसन्नता कभी निराशा देती है यह निद्रा।
कभी साहस कभी भय देती है यह निद्रा।
कभी सन्मार्ग कभी कुमार्ग दिखाती है यह निद्रा।
कभी सहिष्णु कभी असहिष्णु बनाती है यह निद्रा।
कभी विवेक कभी अविवेक देती है यह निद्रा।
कभी दृढ़ संकल्पी कभी किंकर्तव्यविमूढ बनाती है यह निद्रा।
कभी अडिग कभी अविचल बनाती है यह निद्रा,
अटल बनाती है यह निद्रा,
स्थिर बनाती है यह निद्रा,
अचल बनाती है यह निद्रा।।
प्रस्तुति
बैकुंठ बिहारी
स्नातकोत्तर शिक्षक कम्प्यूटर विज्ञान उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सहोड़ा गद्दी कोशकीपुर
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