दोहावली – रामपाल सिंह ‘अनजान’

प्रात काल वो सूर्य को, करती प्रथम प्रणाम। सूर्य देव आशीष दें, रहे सुहाग ललाम।। प्रातकाल से है लगी, सजा रही है थाल। अमर सुहाग सदा रहे,सुना रही है नाल।।…

शरद पूर्णिमा- रामकिशोर पाठक

  पूनम की रात शीतल चाँदनी फैलाए अंतिम रात्रि आश्विन शरद पूर्णिमा कहलाए घर में माताएँ क्षीर खीर बनाए। पूनम की रात शीतल चाँदनी फैलाए। सुधाकर चंद्र निशाकर बारंबार गुहार…

शरद पूर्णिमा – रूचिका

  शरद पूर्णिमा का सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता चाँद। दूधिया रोशनी बिखेरता प्रेम चाँदनी संग दिलोंजान से करता। घटता बढ़ता चाँद वक़्त परिवर्तन की सुंदर कहानी कहता। शीतलता चाँद…

मनहरण घनाक्षरी- जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

दिन भर काम करे, कभी न आराम करे, अकेली सुबह शाम, भोजन बनाती हो। हमें विद्यालय भेज, कपड़े बर्तन धोती, काम से फुर्सत नहीं, खाना कब खाती हो? जब नहीं…

हरिगीतिका- रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’

नवरात्रि में माॅं अन्नपूर्णा, रोहिणी कहलाइए। तू सात्त्विकी कल्याणकारी, चंडिका बन आइए।। काली त्रिमूर्ति महेश्वरी भव, भद्रकाली नाम हैं। आराधना करते सभी तो, लोग जाते धाम हैं।। संहार दैत्यों के…

विधाता छंद: एस. के.पूनम

  चरण छूलूँ भवानी माँ, पनाहों में मुझे पाओ। महादेवी जगतजननी, मुझे तो छोड़ मत जाओ। सदा तुम कष्ट ही हरती, तुम्हारे पास जो जाता। मिटेगा पाप उसका भी, दया…

विधाता छंद- एस. के. पूनम

  कहे गोविंद श्यामा से, मिलूँगा मैं अकेले में। कही राधा अनंता से, पडूँगी ना झमेले में। सदा से ही सखी वृंदा, अजन्मा की दिवानी है। नयन भींगे हृदय बिंधे,…