बचपन-गिरीन्द्र मोहन झा

खेलना, मस्ती करना, बड़े-बड़े ख्वाब देखना, पढ़ाई करना, जिज्ञासु प्रवृत्ति का हो जाना, बड़े-बड़े सपने देखना, पर धरातल से सदा जुड़े रहना, समय पर पढ़ाई-लिखाई करना, सहयोग भावना रखना, अच्छी…

संस्कार-गिरीन्द्र मोहन झा

कहता हूं, व्यक्ति अपने संस्कार का ही होता है गुलाम, सुसंस्कारवश अच्छा काम करता, कुसंस्कार से बुरा काम, अच्छा संस्कार सत्कर्मों, सद्विचारों के चिंतन से ही बनता है, कुकृत्यों, बुरे…

प्रभाती पुष्प – जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

श्याम वंशीवाला सिर पे मुकुट मोर, गोपियों के चित्तचोर, होंठ लाले-लाल किये, खड़ा बंसी वाला है। कहते हैं ग्वाल-बाल, मित्र मेरा नंदलाल , कन्हैया की माता बड़े, नाजों से हीं…

पगडंडी पर भागे ऐसे – रामपाल प्रसाद सिंह अनजान

पगडंडी पर भागे ऐसे, बालक सुलभ सलोने हैं। नन्हीं-नन्हे साथ-साथ हैं, अनुभव नए पिरोने हैं। पगडंडी भी स्वागत करने, हरियाली के बीच खड़ी खड़ी फसल ललकार रही है, शक्ति और…

मुझको कान्हा आज बनाओ -राम किशोर पाठक

अम्मा कुछ मुझको बतलाओ। मुझको कान्हा आज बनाओ। जो चाहूँ वह दे दो मुझको। ऐसे कभी नहीं तड़पाओ।। मैं भी मुरली बजा सकूँगा। मुरली तो मुझको दिलवाओ।। साँपों का फन…

बाल कविता – रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’

होकर मगन गगन के नीचे, दौड़ रहे ये बच्चे हैं। जिन्हें देखकर वयोवृद्ध सब,अंतर मन से नच्चे हैं।। हरियाली के बीच निरंतर,कोयल की मीठी बोली, विहग सरीखे उड़ते जो हैं,डाल…

काम का महत्व-जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

सीखाते कुरान-गीता, गुरुजन माता-पिता, हमें ये जीवन नहीं, मिला है आराम को। मजदूर किसानों को मिलता विश्राम नहीं, सुबह सबेरे जाग, चल देते काम को। कोई काम छोटा-बड़ा होता है…