हम बच्चे भी तो भविष्य देश के
हम बच्चे भी तो भविष्य देश के,
बालश्रम क्या देश के
भविष्य पर प्रतिघात नहीं
हमें भी दे दो ना, खेलने,
पढ़ने, प्यार, दुलार को
क्यों श्रम करने को है, हम लाचार
गरीबी, घर की जिम्मेवारी का बोझ
मजदूरी करवाती,
हमसे हर रोज
हमें भी दे दो ना, कंधों पर किताबों का बैग
नहीं कंधों पर ईटों, कचरो का बोझ,
हमें भी दे दो ना, हाथों में कलम की ताकत,
नहीं जूठे बर्तनों, कपडों का ढेर,
हमें भी पीना है, ज्ञान का घूंट
नहीं पिलाना दूसरों को पानी, चाय
हमें भी दे दो ना, जीवन में उजाला
नहीं चाहिए, गैराजो कि कालिखें,
हर चौराहे, सिग्नल पर बेचते
खिलौने, कलम, किताबें
खेलते ना उन खिलौनों से
ना लिख पढ़ पाते उन कलम, किताबों से
हमें भी दे दो ना, स्कूल की वर्दी
अनुशासन और ज्ञान की बातें,
बस रहती एक ही धुन
पेट की आग बुझाने को
अपराध, शोषण गुलामी, तिरस्कार झेलते,
क्या हम नहीं, भविष्य देश के
बालश्रम, क्या भविष्य पर प्रतिघात नहीं,
क्या यह सभ्य समाज पर अभिशाप नहीं,
सभी बालश्रम निषेध दिवस, मनाते
क्यों नहीं हमारे विमुक्ति, पुनर्वास का प्रयास करते
हम बच्चे भी तो भविष्य देश के,
बालश्रम क्या देश के भविष्य पर प्रतिघात नहीं?
अपराजिता कुमारी
उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय
जिगना जगन्नाथ हथुआ गोपालगंज