हिन्दी और आप-राजेश कुमार सिंह

Rajesh

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हिन्दी और आप

आप बिल्कुल हिन्दी की तरह हो;

आपको समझना आसान नहीं है।
भाषा की समरसता हिन्दी,

भावों की सरसता आप; यह जोड़ी सही है।।

राजभाषा कहलाती है;

साहित्य इनसे पूरी तरह से गौरवान्वित है।
हृदय पर राज है इनका;

इनकी लेखनी से हर कोई आशान्वित है।।

इन राष्ट्रीय धरोहरों को दुनिया भूल जाए;

इतनी भी नादान नहीं है।
आप बिल्कुल हिन्दी की तरह हो;

आपको समझना आसान नहीं है।।

इन्हें माता-मातृभाषा कहते हैं;

उन्हें मित्रता की महत्ता-अभिलाषा कहते हैं।
इनसे भारतवर्ष एकसूत्र में बँधा है;

उनसे राजेश के अंदर स्नेहिल भाव पनपते हैं।।

‘हिन्दी और आप’ युगों-युगों तक सलामत रहे;

मेरा अरमान यही है।
आप बिल्कुल हिन्दी की तरह हो;

आपको समझना आसान नहीं है।।

राजेश कुमार सिंह

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