आभूषण -जैनेन्द्र प्रसाद रवि

Jainendra

आभूषण
मनहरण घनाक्षरी छंद

सदियों से मानव को,
लुभाता है चकाचौंध,
नर-नारी सभी को ही, आभूषण भाता है।

सभी धनवान लोग,
करते हैं खरीदारी,
जान से भी ज्यादा प्यारा, जैसे पत्नी-माता है।

दुनिया में पहचान,
हमारी बढ़ाये शान,
धातुओं में अनमोल,बनाया विधाता है।

धातु की अहमियत
दिनों दिन बढ़ रही,
लोगों की दीवानगी-हमझ नहीं आता है।

जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

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