आभूषण
मनहरण घनाक्षरी छंद
सदियों से मानव को,
लुभाता है चकाचौंध,
नर-नारी सभी को ही, आभूषण भाता है।
सभी धनवान लोग,
करते हैं खरीदारी,
जान से भी ज्यादा प्यारा, जैसे पत्नी-माता है।
दुनिया में पहचान,
हमारी बढ़ाये शान,
धातुओं में अनमोल,बनाया विधाता है।
धातु की अहमियत
दिनों दिन बढ़ रही,
लोगों की दीवानगी-हमझ नहीं आता है।
जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
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