छूआछूत
कोई नहीं छोटा बड़ा,
सबको समान गढ़ा,
आमिर-गरीब होना, तो मात्र संजोग है।
ईश्वर की रचना में-
विविध प्रकार जीव,
तुलसी के सभी दल, का होता प्रयोग है।
ऊंँच-नीच का रिवाज-
मानव ने बनाया है,
छुआछूत दुनिया का, सामाजिक रोग है।
कहते हैं जिसे छूत,
वह भी ईश्वर पूत।
स्वयंभू मठाधीशों का, यह तो उद्योग है।
जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
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