छुआछूत-जैनेंद्र प्रसाद

Jainendra

छूआछूत

कोई नहीं छोटा बड़ा,
सबको समान गढ़ा,
आमिर-गरीब होना, तो मात्र संजोग है।

ईश्वर की रचना में-
विविध प्रकार जीव,
तुलसी के सभी दल, का होता प्रयोग है।

ऊंँच-नीच का रिवाज-
मानव ने बनाया है,
छुआछूत दुनिया का, सामाजिक रोग है।

कहते हैं जिसे छूत,
वह भी ईश्वर पूत।
स्वयंभू मठाधीशों का, यह तो उद्योग है।

जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

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