कलम-भोला प्रसाद शर्मा

Bhola

कलम

वाह रे! कलम तेरी बात ही जुदा,
छूट जाए एक नुक्ता तो खुदा से हो जाए जुदा।
अगर हमनें की बेवफाई तो,
दिल मेरा भी गँवारा न हुआ।
एक शाम भी छूट जाए तो,
लगा जैसे मन में कोहराम हुआ।
देख तेरी एक गलती के कारण
कोई तो चार फुट ऊपर टॅंग गया,
और दूसरा चार फुट जमीन में गर गया।
तेरी अच्छाई की तो क्या कहना,
एक वक्त भी छूट जाए बिल्कुल ही मौन रहना।
तेरी किस्मत भी क्या लाजवाब है,
रामायण, बाईबिल, गीता, कुरान लिखे कितने नायाब है।
चन्द रुपयों से लेकर लाखों तक तेरी मोल है,
जो समझ जाए तो उनके लिए अनमोल है।
जो तेरे शरण में आये बन तो गया वह महान,
न आये तेरे शरण तो जिन्दगी उसका हुआ वीरान।
चमकती तेरी लेखनी किरणों की भांति,
कितने युद्धों को विराम दिये कलमों की क्रांति।
तेरी ही ताकत से कितने वीर इतिहास रचा,
आज हर तरफ कलमकार की ही जय-जयकार मचा।

भोला प्रसाद शर्मा
डगरूआ, पूर्णिया (बिहार)

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