किसानों की बेचैनी..जनेंद्र प्रसाद रवि


कार्तिक है बीत रही,
रबी अभी लगी नहीं,
आसमां में काले घन, दिखा रहे नैन हैं।

खेतों में   तैयार  धान,
आती नहीं खलिहान,
तब तक हलधर, रहते बेचैन हैं।

डर है बादल  कहीं-
पानी नहीं बरसा दे,
सोच-सोच कर नींद, आती नहीं रैन है।

खेती के सहारे ही तो-
जीवन  यापन   होता,
फसल-अनाज बिना, मिलता न चैन है?

जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

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