मच्छर से जीवन की सीख-विवेक कुमार

मच्छर से जीवन की सीख

आओ सुनाऊं अपनी एक कहानी
हूं मैं एक हाड़मांस का आदमी
दिन भर नोटों की जुगत में रहता
एक पल चैन की सांस न लेता
फिर भी उफ्फ तक न करता।
अब सुनता हूं एक दिन की कहानी,
खुद अपनी ही जुबानी
काम से घर थक हाड़कर लौटा
सोचा पहले पेट पूजा करूंगा
बाद अच्छी नींद लेकर
अपनी थकान दूर करूंगा
थोड़ी चैन की सांस लेकर
संग स्वप्न को आगोश में भरकर
अपनी मनसा पूरी करूंगा।
लगा करने इसकी जुगस मैं
खयाली पुलाव तो मैंने खूब पकाई
मगर आगे हुआ क्या
सुनाता हूं उसकी कहानी।
पेट की अगन मिटाकर
कर ली सोने की तैयारी
लेकर सुख सपने
चला अपने सुख शैय्या पर
मिटाने अपनी थकान।
स्वप्न नगरी की ज्यों ही की शुरुआत
पड़ी खलल कानों में
आई गुनगुनाने की आवाज
गुस्से में मैं आपे से बाहर हुआ
आव देखा न ताव
जड़ा एक थप्पड़।
खुली नींद जब पता चला
पड़ी थी अपने गालो पर
इस कारिस्तानी पर मैं हंस पड़ा
हंसी संग हुई ग्लानि मुझे
उस वक्त नींद से मदहोश था
सो पुनः इसकी जुगत लगाई।
फिर क्या कहूं भाई
अचानक चुभन सा महसूस हुआ
जैसे बिन डॉक्टर मिली हो सुई
हो गया सब सुन्न
उई उई उई मां बोल उठा
नींद हो गई काफुर।
चूसक ने चूस ली मेरी खून
लगा जैसे दम हुआ बेदम
बाहर डींगे हांकने वाले की
रात भर की जद्दोजहद में
हेकड़ी हो गई गुल।
नींद से तब तक मिल चुकी थी निजात
सबकी जद में थे मच्छर महाराज
जिसकी है न कोई सानी
बस यही है एक परेशानी।
रंक हो या राजा
हर तरफ बजता जिनका बाजा
मान गया हूं बात ये आज
बाबू न मईया धरती पर
मच्छर का राज रे भईया
मच्छर का राज।
फ्री में मिली है इनकी सौगात
कब मिलेगी निजात?
पूरे प्रकरण से मिली सबक
जो आपसे साझा करता हूं
मच्छर हो या हो इंसान
जिंदगी बदरंग करने में सब मेहरबान।
उनके लिए मेरा संदेश
चाहे लाख करो सितम
हंस हंस के सहेंगे हम
जीवन संघर्ष की गाथा है
कोई पार न इससे पता है
ये बात हम बतलाते हैं
हार कभी न मानेंगे
जीवन सफल बनायेंगे।

विवेक कुमार
उत्क्रमित मध्य विद्यालय गवसरा मुशहर

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