कल से पक्का पढ़ूंगा – बाल हास्य कविताआज बहुत रात हो गई ,फिर वही बात,कॉपी खुली है पर नींद का है साथ।माँ ने पुकारा — “बेटा, अब अच्छे से सो…
जिंदगी – राम किशोर पाठक
जिंदगी -सूर घनाक्षरी एक रास्ता है जिंदगी,आओ कर लें बंदगी,त्याग चित की गंदगी, चलते जाइए।कर्म धर्म मर्म ज्ञान,अपना पराया जान,सबको समान मान, समता लाइए।धैर्य धारिए मगर,स्नेह वारिए अगर,सौम्य बोलिए बसर,…
शरद ऋतु का दस्तक -जैनेंद्र प्रसाद रवि
शरद् ऋतु का दस्तक अंधकार छंटते हीं, रवि की सवारी आया, बैठ तरु डाल पर, करते परिंदे शोर। पछियाँ जो समूह में, कोलाहल कर रहे, अचानक झुंड बना, उड़ते गगन…
बिन मौसम बरसात – अवधेश कुमार
बिन मौसम बरसात : बाल कविता , मौसम आजकलहथिया नक्षत्र की बिन मौसम बरसात आया ,अपने साथ लाया बाढ़ और ढंडक की छाँव,घिर गई बदरिया छाई बैचैनी गाँव में ।धरती…
शरद पूर्णिमा – गिरीन्द्र मोहन झा
शरद पूर्णिमा की रात सुहावन, है अति मनभावन, चंद्रमा की चांदनी, उजाला, शीतलता, है अति पावन, चंद्रदेव अमृत-वृष्टि हैं कर रहे, माँ लक्ष्मी का पूजन-अर्चन, कुलदेवी को प्रणाम निवेदित, पान-मखान…
जीवन सुंदर सरस – महामंगला छंद गीत, राम किशोर पाठक
जीवन सुंदर सरस, लगता हरपल खास। कर्म करे जो सतत, होता नहीं उदास।। हारा मन कब सफल, मन के जीते जीत। जो लेता है समझ, बदले जग की रीत।। जीत…
शरद पूर्णिमा, रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
विधाता छंदधारित मुक्तक शरद पूर्णिमा कहीं संगम कहीं तीरथ, धरा पर पुण्य बहते हैं, मगर जो आज देखेंगे, कहेंगे व्यर्थ कहते हैं। जहाॅं शंकर छुपा कर तन, किए श्रृंगार गोपी…
वक्त पूछता है, गिरीन्द्र मोहन झा
वक्त पूछता है रात्रि में शयन से पूर्व वक्त पूछता है, आज तुमने क्या-क्या अर्थपूर्ण किया, सुबह होती है जब, वक्त पूछता है, प्रिय ! आज तुम्हें करना है क्या-क्या,…
बादल, आशीष अम्बर
छोटी-छोटी बूँदें लाएँ, ये मतवाले बादल, श्वेत-स्लेटी, नीले-पीले, भूरे-काले बादल। कैसे-कैसे रूप बदलते, करते जादू-मंतर, हाथी जैसे कभी मचलते, गरजन करें निरंतर। इधर-उधर घोड़ों-से दौड़े, चाबुक वाले बादल, छोटी-छोटी…
मनहर कृष्ण- महामंगला छंद, राम किशोर पाठक
अंजन धारे सतत, कृष्ण कन्हाई नैन। देख लिया जो अगर, कैसे पाए चैन।। मूरत मनहर सुघर, मिले न कोई और। बिना गिराए पलक, देखूँ करके गौर।। श्याम सलोने सुघर, रखें…