आभूषण -रामपाल प्रसाद सिंह

मनहरण घनाक्षरी

आभूषण

कंदरा गुफाओं बीच,नारी रही नर खींच,
कल्पना में डूबा नर ,नारी को सजाने में।

पत्थरों को घिसकर,भावना से प्रेमभर,
पहला ही आभूषण,आया था जमाने में।

बना प्यार का आधार, चाहे बना कंठहार,
आभार जताती नारी,लज्जा को बचाने में।

सोने की चिड़िया कभी,भारत को कहे सभी,
आभूषित देव-देवी,मंदिर ठिकाने में।

रामपाल प्रसाद सिंह अनजान
पूर्व प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दर्वेभदौर

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