राष्ट्र धर्म-दिलीप कुमार गुप्त

Dilip gupta

राष्ट्र धर्म 

क्षेत्रीयता की संकीर्णता के पार
स्वार्थ परक नीति के उस पार
भाषाई मनोवृत्ति से मुख मोड़कर
अस्पृश्य तमिस्त्रा से रिश्ता तोड़कर
भारत ज्योत्सना झिलमिलाना है
आओ! हमें राष्ट्र धर्म निभाना है।

माँ भारती की हम दिव्य संतान
वैदिक ऋचा से पाया सदज्ञान
मातृभूमि स्वर्ग से भी है महान
पावन माटी समाहित मन प्राण
भारत गौरव तिलक लगाना है
आओ! हमें राष्ट्र धर्म निभाना है।

कृषक शेट्टी सुजान कामगार
कर्तव्य बोध के सब शूरवीर
मातृभूमि के प्रहरी पूज्य महावीर
रामराज्य के पुरोधा जय रघुवीर
भारत गौरव मधुर गाना है
आओ! हमें राष्ट्र धर्म निभाना है।

शिक्षा शासन आरोग्य की सेवा
लोकहित हो पुनीत जग सेवा
अहिंसक भाव जागृत हो मूक जीव सेवा
सदचिंतन प्रभु भक्ति की मेवा
भारत भविष्य उज्ज्वल बनाना है
आओ! हमें राष्ट्र धर्म निभाना है।

निर्मल शुद्ध अन्तःकरण हो सबका
सहयोग परस्पर भाव मनुज का
प्रशस्त हो प्रगति सुपथ का
समर्पित हो सद्भाव धवल मैत्री का
भारत अशोक उर गहवाना है
आओ! हमें राष्ट्र धर्म निभाना है।

दिलीप कुमार गुप्त
मध्य विद्यालय कुआड़ी
अररिया

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