सीख-नूतन कुमारी

सीख

मुसाफ़िर वो नहीं होता,
जो केवल बन पथिक गुजरे,
वही अंगार अनुपम हो,
कमल-पद की, निशां छोड़े।
गुज़रते पल को मत झाँको,
यही अनुभव सिखाता है,
जीवन को मान लो उत्सव,
कल को किसने जाना है।
ठिठुरती सर्द मौसम में,
बनों तुम सूर्य की भाँति,
धरा को जो तपिश देकर,
बने हमदर्द और साथी।
सुलगती ग्रीष्म ऋतु में,
बनो चंदा सा तुम शीतल,
मिले हर रुह को ठंडक,
होगा हर्षित सा ये महीतल।
सीखो तुम बहती नदियाँ से,
निरंतर आगे ही बढ़ना,
जो भर लो अंजुली में तो,
वहीं आकार ले अपना।
निहारो खिलती पुष्प को,
जो इक संदेश देता है,
हमेशा हँसते रहने की,
वो हरदम सीख देता है।
दिन और रात से सीखो,
सुख दुःख का समायोजन,
जीवन के हर तमस को,
दूर कर दिखलाता है दर्पण।
कभी ज़र्रा सा इक झोंका,
दे जाए सीख निश्छल सा,
पवन हमको सिखाता है,
करो व्यवहार इक जैसा।
सृष्टि के कण-कण में मानो,
है इक संजीवनी झाँकी,
ईश्वर ने खूब तराशा है,
जगत को सीख की भाँति।

नूतन कुमारी (शिक्षिका)
पूर्णियाँ, बिहार

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