बीज की चाह- मेराज रजा

  दाना हूँ मैं नन्हा-मुन्ना, मिट्टी में हूँ गड़ा-गड़ा! कैसी होगी दुनिया बाहर, सोच रहा हूँ पड़ा-पड़ा! मीठा-मीठा पानी पीकर, अंकुर मैं बन जाऊँ! बढ़िया खाद मिले तो खाकर, खिल-खिलकर…