भूप जनक के बाग में, आए राजकुमार। दिव्य मनोहर वृक्ष से, मुग्ध नयन अभिसार।। नव किसलय नव पुष्प से, हर्षित पुष्पित बाग। कीर मोर के मध्य में,कोयल छेड़े राग।। ताल…
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कुंडलिया- देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
माता की आराधना, करो सदा प्रणिपात। अंतर्मन के भाव में, भरो नहीं आघात।। भरो नहीं आघात, कर्म को सुंदर करना। मन की सुनो पुकार, पाप को वश में रखना। पढ़कर…
मनहरण घनाक्षरी- देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
वृक्ष पुत्र के समान, रखें सभी नित्य ध्यान, शुद्ध वायु प्राप्त होती, बड़े-बड़े काम हैं। पत्ते हैं गुणकारक, छाया तो शांतिदायक , फूल हैं मनमोहक, सुखद ललाम हैं। देवों के…
मनहरण घनाक्षरी – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
शाक्य वंश जन्म लिए, सत्य धर्म भाव किए, तथागत बुद्ध हुए, कृतियाँ महान हैं। राजपाट त्याग कर, मूल कर्म झोली भर, ज्ञान बोधि वृक्ष पाए, दया के निधान हैं। जीव-…
पावन होली आई है- देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
विधा: गीत(१६-१४) आओ स्नेहिल रंग उड़ाओ, पावन होली आई है। बच्चे बूढ़े नर- नारी पर, कैसी मस्ती छाई है।। सुंदर है बच्चों की टोली, सबके कर पिचकारी है। गली- गली…
मनहरण घनाक्षरी- देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
विधा: मनहरण घनाक्षरी राष्ट्र के हैं दिव्य लाल, सौम्य तन उच्च भाल, ज्ञान बुद्धि प्रेम के वे, निर्मल स्वरूप हैं। बाल्य नाम नरेन्द्र है, कर्मयोगी नृपेन्द्र है, देशभक्ति धर्म हेतु,…
दोहा- देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
विधा: दोहा रचनाकार: देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ “”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””” नित्य सुबह जगकर करें, हम ईश्वर का ध्यान। जिनकी महिमा है अमित, करुणा कृपा-निधान ।। नये वर्ष में क्या नया, करिए नित्य…
प्यारा गाँव- देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
सबसे प्यारा गाँव हमारा, अद्भुत सुंदर न्यारा है। चलो तुम्हें हम आज दिखाएँ, उर का भाव हमारा है।। होती अनुपम मृदा गाँव की, सत्य सभी ने जाना है। खान गुणों…
मैं भारत ज्ञान प्रदाता हूँ- देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
मैं भारत, ज्ञान प्रदाता हूँ। प्रज्ञा की ज्योति जलाता हूँ।। अपनी संस्कृति, सबसे सुंदर, यह जन-जन को बतलाता हूँ। मैं भारत ———————। माटी का कण-कण है प्यारा। इसका वैभव अद्भुत…
दोहावली -देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
काया वह किस काम की, अगर न हो उपयोग। श्रम की ज्वाला में तपा, करिए तब उपभोग।। बुरा कर्म होता बुरा, रहिए इससे दूर। अपनाकर सत्कर्म को, भरें तोष भरपूर।।…