अंगेठी में ना होती लौ ,ना होती कोई लपेटे । पर तमस समेटे रहते हैं ये काले जलते कोयले। यूं ही साए में जीते हैं पर तम- तिमिर-तृष्णा , सब…
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स्वरचित कविता का प्रकाशन
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