वे स्वर्णिम दिन-अवनीश कुमार

वे स्वर्णिम दिन

वे भी क्या स्वर्णिम दिन थे जब सारी शिक्षा गुरु चरणों में मिल जाया करती थी

वेद वेदांग, उपनिषद, ऋचा, ऋचाएँ
योग, तंत्र, मंत्र, भूगोल, खगोल की विद्याएँ
युद्ध कौशल, प्राणायाम, व्यायाम की कुशलताएँ

व्याकरण, पुराण और विज्ञान की शिक्षाएँ व
गीत, संगीत, सुर लय ताल की शिक्षा पाने में

वे भी क्या स्वर्णिम दिन थे
जब सारी शिक्षा गुरु चरणों में मिल जाया करती थी।

संस्कार, संयम, त्याग और तपोबल के साक्षात ही जब गुरुवर थे
ममत्व, स्नेह सी स्वरूपा की छत्रछाया जो गुरुमाता थी

नियम, अनुशासन का पालन ही सच्चा धर्म कहलाता था
गुरु के चरणों के रज की जो माथे तिलक लगाया करता था
शिष्यों में ऐसा ही शिष्य शिष्योत्तम कहलाया करता था

वे भी क्या स्वर्णिम दिन थे जब सारी शिक्षा गुरु चरणों में मिल जाया करती थी।

गुरु की महिमा सबसे उँची जब बतलाया जाता था
गूढ़ रहस्यों के प्रभेदन में, जब देश का राजा भी अपने गुरुओं से मार्गदर्शन पाया करता था

गुरु की बातों को जो शिष्य निरन्तर मनन करता था
ऐसा ही शिष्य अपने ज्ञान का परचम लहराया करता था
वे भी क्या स्वर्णिम दिन थे जब सारी शिक्षा गुरु चरणों में मिल जाया करती थी।

शाश्त्रार्थ में सफल होने पर
जब शिष्य उपाधि पाया करता था
गुरु के आदेशों का जो शिष्य अक्षरशः पालन करता था
छात्रों में हीं ऐसा छात्र छात्रोत्तम कहलाया करता था

वे भी क्या स्वर्णिम दिन थे जब सारी शिक्षा गुरु के चरणों में मिल जाया करती थी।
वे भी क्या स्वर्णिम दिन थे जब सारी शिक्षा गुरु चरणों में मिल जाया करती थी।।

अवनीश कुमार
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित मध्य विद्यालय अजगरवा पूरब
 पकड़ीदायल पूर्वी चंपारण (मोतिहारी)

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