कलम हमारा आज है, लिखने को तैयार,
चिंतन समाज का नहीं, लिखना तब बेकार।
शब्दों को बस गूँथते, बनते रचनाकार,
कथ्य-शिल्प को छोड़ते, लाते नव आचार।
नहीं प्रेम-चिंतन धरे, बिना किसी आधार,
सबके मन में चल रहा, निंदा का व्यवहार।
लोग भरोसा कर रहे, जिसको देकर प्यार,
हत्यारा बनता वही, करता है संहार।
रिश्ते-नाते हो रहे, पलभर में बेजार,
कल तक जिनके संग में, रहते थे गुलजार।
लूट-पाट मच रही, कुछ तो रचना चोर,
गर्व भाव से कर रहे, पाप-कर्म घनघोर।
रक्षक भक्षक बन रहा, नैतिक मूल्य बिगाड़,
खाईं में है धँस गया, कहते जिसे पहाड़।
आओ मिलकर हम करें, वापस सबको प्यार,
जिससे समाज को मिले, नैतिक मूल्य विचार।
कलम हमारी कर सके, जो न करे तलवार,
पतितों को पावन करे, रचे वही धार।
राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय, भेड़हरिया इंग्लिश, पालीगंज, पटना