हम सब प्रेम पुजारी मिलकर,
जीवन दीप जलाना सीखें।
जग में फैले अंधकार को,
कर्म रश्मि नहलाना सीखें।
अपना घर तो सुंदर सजता,
उस घर को भी सजाना सीखें।
जिसके घर ना कोई उजाला,
रश्मि सुधा बरसाना सीखें।
घर घर फैले प्रेम अमिय हम,
दिल का दर्द मिटाना सीखें।
अश्रु यदि पलकों में उसके,
नयनों से बतियाना सीखें।
मन में गर है अंधियारा तो,
हम भी दीप जलाना सीखें।
दीवाली पर राम-प्रकाश को,
जन मन तक पहुँचाना सीखें।
दिये के रौनक और प्रकाश को,
जीवन में बस जाना सीखें।
हम सब हिल-मिल जीत हार को,
जश्न सहित अपनाना सीखें।
राम तो हैं करुनानिधान बस,
हम करुणा अपनाना सीखें।
जैसे जगमग दीप अमावश,
प्रेम-रश्मि फैलाना सीखें।
राम पधार रहें हैं अयोध्या,
हम कुछ राम रमाना सीखें।
खुद के रावण को तिल भर भी,
दीपक तले मिटाना सीखें।
स्नेहलता द्विवेदी।
मध्य विद्यालय शरीफगंज, कटिहार