दिल के एहसास – मनीष कुमार शशि

माँ सरस्वती का आराधक
पुस्तक का हूं मैं अनुयायी
गुरुकृपा से ही रग रग में मेरे
लेखन की कला उभर आई

समय चक्र सदा एक समान
नही रहता जग में मेरे भाई
कही किसी को इर्ष्या हुई
कही अपनो ने आग लगाई

कल तक था जो सबका चहेता
आज सबने उस से दूरी बनाई
उपयोग लिया था सबने जमकर
मिली सिर्फ गमों भरी तन्हाई

कुशल तैराक हु मैं गुरुकृपा से
भंवर से मैं उभरकर आऊंगा
वक्त के ग्रहण के हटते ही स्वतः
भानु सम तेजस्वी बन जाऊंगा

समय का समर्थक और साधना का तपस्वी हूं मैं
कार्य के बल पर समाज में समृद्धि प्राप्त करनी है ।

मनीष कुमार शशि
बक्सर

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