दोहावली
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बहें भावना में नहीं, कभी सहजता भाव।
हीन कलुषता त्याग कर, बनें कर्म की नाव।।०१
भावों में भीगें सदा, मत बह जाएँ आप।
धैर्य भाव के ज्वार की, छोड़ें सुंदर छाप।।०२
शिक्षा असली है तभी, जब हों सम्यक कर्म।
सत शिव सुंदर भाव पा, बनिए वाहक धर्म।।०३
बच्चों में भरिए सदा, नैतिक श्रेष्ठ विचार।
समझ परख के भाव से, जीवन हों साकार।।०४
सदा परीक्षा ही नहीं, जीवन का है मर्म।
असल परीक्षा सर्वदा, अंतस पावन कर्म।।०५
नाहक कोशिश मत करें, नाहक कभी न होड़।
आत्म भरोसा सर्वदा, होता नित बेजोड़।।०६
हिम्मत कभी न हारिए, चलते रहिए आप।
श्रेष्ठ भाव शुभ दृष्टि रख, करिए प्रभु का जाप।।०७
देवकांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार
