दोहा (मां)- मनु रमण चेतना

Manu Raman Chetna

मां की छवि को देखकर,आए जिय में जान।
उनसे बढ़कर कुछ नहीं, वह होती भगवान।।

मनसा अन्तर सेवतीं, वचसा कर फटकार।
मृदु वचनामृत बोलकर, देतीं स्नेह अपार।।

मां है धरती से बड़ी, कहता वेद पुराण।
नैतिक उनकी बात से, होता अनुपम ज्ञान।।

उनके जाने से लगे,सूना अब संसार ।।
बिना चुकाए मोल अब , कौन करेगा प्यार।।

उस दुनिया से लौटकर,आओ मां इकबार।
तेरे बिन अब हर खुशी,लगती है बेकार।।

स्वरचित:-
मनु रमण चेतना,
पूर्णियां बिहार

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